सभी परिस्थितियों में खुश रहने वाले व्यक्ति अपने आप में एक संतुष्ट व्यक्ति होता है । उसको आसपास की किसी भी प्रकार की परिस्थितियों से फर्क नहीं पड़ता क्योंकि जो कुछ होना है वह तो हो कर रहेगा । उसके लिए क्या रोना और क्या परेशान होना । अगर ट्रेन लेट है या एयरप्लेन सही समय पर नहीं पहुंच पा रहा है तो इसमें आप क्या कर सकते हो, चिंतित होकर अपने परिवार को फोन करके बार-बार बताओ कि हम लेट हो रहे हैं, क्या होगा ? वगैरा-वगैरा ।इस प्रकार से हम केवल अपने आप को उत्तेजित करते हैं, साथ ही साथ अपने परिवार अपने दोस्तों को भी दुखी कर देते हैं । इसकी बजाय अगर आप इत्मीनान से बैठकर मनन करें, मेडिटेशन करें या कोई किताब पढ़ें , कुछ वैसा करें जो आपके मन को शांत करें। इस प्रकार आप अपने अंदर की उत्तेजना को , क्रोध को , दुखी मन को आसानी से शांत कर सकते हैं और वैसे भी यह सारा दुख बेवजह हो रहा है । हम अपने आसपास ऐसा वातावरण पैदा कर देते हैं, छोटी-छोटी बातों पर जिसका कोई भी मतलब नहीं होता।
कोई चीज खो जाती है तो बजाय यह सोचने के कि वह चीज हमने कहां रखी होगी थोड़ा सा इत्मीनान से बैठकर मनन करें तो वह चीज आपको खुद ही ढूंढने से मिल जाएगी लेकिन होता इसका उल्टा है , हम क्या करते हैं ? अपने परिवार के सभी सदस्यों को बोल बोल परेशान करते हैं कि हमारी चीज खो गई है, अपना दुख व्यक्त करते है, परेशानी बताते हैं और वह सभी अपना काम धाम छोड़कर हमारी चीज खोजने में लग जाते हैं बाद में पता लगता है कि वह चीज तो खुद कहीं रखी थी जो 1 घंटे या 2 घंटे बाद खुद को याद आती है और फिर हम बता देते है कि वही किताब मैंने अपने दोस्त को दी थी और वह भूल गया था लेकिन जब तक यह याद आता तब तक पूरा परिवार अपना समय उस चीज को ढूंढने में और आप को सांत्वना देने में लगा रहता है , इस प्रकार से हमने अपनी गलती को दूसरों पर थोपा उन्हें बेवजह सजा दी क्योकि दुसरो के समय को व्यर्थ करना सजा से कम नही, यह उदाहरण नहीं है , यह कई लोगों के साथ होता है ।
फंडा यह है कि परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी ना होने दें , अपने आप को संतुलित रखें ,खुश रहें और दूसरो को भी खुश रखे।
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